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काफिले के पीछे चल रहा मुला नसीरुद्दीन हालांकि कर दो बार में पूरी तरह लथपथ हो चुका था मगर फिर भी वह खुश था इस धूल मिट्टी से उसे सोंधी सोंधी खुशबू आती महसूस हो रही थी आखिर यह मिट्टी उसके अपने प्यारे वतन बुखारा की थी।
काफिला जिस वक्त शहर की चारदीवारी के करीब पहुंचा फाटक पर तैनात पहरेदार फाटक बंद कर रहे थे काफी लेकर सरदार ने दूर से ही मोहरों से भरी थैली ऊपर उठाते हुए चिल्लाकर पहरेदार ओ से कहा खुदा के वास्ते रुको हमारा इंतजार करो
हवा की साईं साईं और घंटियों की गन गन आहट में पहरेदार उनकी आवाज ना सुन सके और हौसला होने के कारण उन्हें मोहरों से भरी थैली भी दिखाई नदी फाटक बंद कर दिए गए अंदर से मोटी मोटी साथ ले लगा दी गई और पहरेदार ब** जिओ पर चढ़कर तोपों पर तैनात हो गए।
धीरे-धीरे अंधेरा फैलना शुरु हो गया था हवा में तेजी के साथ साथ कुछ ठंडक भी बढ़ने लगी थी आसमान पर सितारों की टीम टीम आहट के बीच दूज का चांद चमकने लगा था
सरदार ने काफिले को वही चारदीवारी के पास ही डेरा डालने का हुक्म दे दिया बुखारा शहर की मस्जिदों की ऊंची ऊंची मीनारों से जुट फूटे कि उस खामोशी में अजान की तेज तेज आवाजें आने लगी अजान की आवाज सुनकर काफिले के सभी लोग नमाज के लिए इकट्ठा होने लगे मगर मुला नसीरुद्दीन अपने गधे के साथ एक और को खिसक लिया।
वह अपने गधे के साथ चलते हुए कहने लगा ए मेरे प्यारे गधे काफिले के इन लोगों को तो खुदा ने सब कुछ पता किया है जिसके लिए यह व्यापारी नमाज पढ़कर खुदा का शुक्रिया अदा कर रहे हैं यह लोग शाम का खाना खा चुके हैं और अभी थोड़ी देर बाद रात का खाना खाएंगे मेरे वफादार गधे मैं और तू तो अभी भूखे हैं हमें ना तो शाम का खाना मिला है और ना ही अभी रात को मिलेगा।
हम किस चीज के लिए खुदा का शुक्रिया अदा करें अगर अल्लाह हमारा शुक्रिया चाहता है तो मेरे लिए पुलाव की तश्तरी और तेरे लिए एक गठियावाला घास भिजवा दे।
काफिले से काफी दूर आकर उसने अपने गधे को पगडंडी के किनारे एक पेड़ से बांध दिया और काशी एक पत्थर अपने सिरहाने रखकर नंगी जमीन पर ही लेट गया ऊपर टिमटिमाते सितारे भरे आसमान पर उसकी नजर टिक गई आसमान में टिमटिमाते सितारों का जलसा भुना हुआ था।
अक्सर बाय इन सितारों को निहारता रहता था कभी बगदाद से कभी इस्तांबूल से कभी दमिश्क से तो कभी तेहरान से।